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Sunday, 12 April 2009

आसमान से आग

आसमान से आग उगलता यह ऐसा सावन क्यों था
सारी दुनिया थी तो थी पर तू मेरा दुश्मन क्यों था

सीने पर जो घाव लगे, थे घाव पराये हाथों के
तीर पीठ पर खाए उनमें इतना अपनापन क्यों था

पथ तो पथरीला होगा ही ऊबड़-खाबड़ भी होगा
षड्यंत्रों की शूलों वाला अपना ही आँगन क्यों था

कहाँ गया उत्साहित सावन उल्लासित मधुमास कहाँ
उखडा-उखडा उजडा-उजडा मुरझाया मधुबन क्यों था

पहले तो करता रहता था कितनी सारी बातें वो
मेरी सूरत से भी नफरत रूठा यों दर्पण क्यों था

उसकी शीतलता के किस्से खूब सुने थे लोगों से
"जोगेश्वर" का हाथ लगा तो जलता सा चंदन क्यों था

1 comment:

श्यामल सुमन said...

अपनापन बाँटा था जैसा वैसा न मिल पाता है।
अब बगिया से नहीं सुमन का बाजारों से नाता है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com