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Tuesday, 14 April 2009

आर-पार शीशे का घर

आर-पार शीशे का घर
सब कुछ दिख जाने का डर

खूब डराए वह मुझको
मैं कहता तू रब से डर

पानी सर से पार हुआ
कुछ तो कर अब कुछ तो कर

उन चरणों में सर सबके
सब कहते यह तू भी कर

छत ही नीची, क्या करिए
कैसे रखिये ऊंचा सर

की है गलती पर गलती
अब उनका हर्जाना भर

सच बलिदान अगर मांगे
तो "जोगेश्वर" तू ही मर