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Friday, 24 April 2009

बेल ज़हरीली

बेल ज़हरीली हमारे बाग़ को डसने लगी
देखिये धरती बिचारी बोझ से धंसने लगी

आजकल इस शहर में चलने लगी कैसी हवा
कसमसाती धड़कनें है साँस भी फंसने लगी

हंस निकला मानसर की ओर सर ऊंचा किए
और बगुलों की जमातें फब्तियां कसने लगी

अब कहाँ बतलाइये लेकर चलें दिलदार को
आजकल तो चाँद पर भी बस्तियां बसने लगी

आ गयी बरबस हंसी नादाँ आंधी पर मुझे
देख कर जलता दिया जब आंधियां हंसने लगी

हाल "जोगेश्वर" हमारे देश का क्या हो गया
मांस तो छिल ही गया अब हड्डियां घिसने लगी

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