Subscribe

RSS Feed (xml)

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

Tuesday 7 April, 2009

ऊपरवाला दे देता है

ऊपरवाला दे देता है क्यों ऐसा वरदान सदा
मैं जिस पत्थर को भी पूजूं बन जाए भगवान सदा

आना जाना सत्य-सनातन ठहर सको तो अचरज है
दुनिया एक सराय सरीखी तू उसमें मेहमान सदा

आओ बैठो सुस्तालो पर मानस ऐसा बना रहे
जाने कब चलना पड़ जाए सधा रहे सामान सदा

कौन गवाही कौन सफाई कौन सुनेगा तर्क तेरे
ऊपरवाला सीधे जारी कर देता फरमान सदा

उपदेशों की झड़ी लगाने वाले सोचें इतना सा
करना बहुत कठिन होता है कहना तो आसान सदा

मैं तो जैसा हूँ वैसा हूँ इक खोते सिक्के जैसा
फ़िर भी मैं इतना सम्मानित यारों का अहसान सदा

नहीं देवता नहीं फ़रिश्ता नहीं बनो भगवान कभी
"जोगेश्वर" बन सको अगर तो बने रहो इंसान सदा

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है ...

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा ... बधाई।