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Monday, 11 May 2009

ऐरे गैरे

ऐरे गैरे नत्थू खैरे जिस दिन से स्वीकार हुए  
द्वार देहरी घर आँगन सब उस दिन से बीमार हुए

घर के सारे बूढे बूढी दर्शक बन कर बैठ गए 
जिस दिन बच्चे बोल उठे अब हम भी खुद-मुख्तार हुए

आना जाना मिलना जुलना सपने की सी बात हुयी
मुश्किल अब तो राम-राम भी जब से वे सरकार हुए

कौन बिका है किसने बेचा और खरीदा है किसने 
बाज़ारों में घर हैं अपने घर थे सो बाज़ार हुए

"जोगेश्वर" कुछ समझ न पाया क्या जादू करता है वो 
उसने तो कुछ भी कह डाला हम कैसे तैयार हुए

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