द्वार देहरी घर आँगन सब उस दिन से बीमार हुए
घर के सारे बूढे बूढी दर्शक बन कर बैठ गए
जिस दिन बच्चे बोल उठे अब हम भी खुद-मुख्तार हुए
आना जाना मिलना जुलना सपने की सी बात हुयी
मुश्किल अब तो राम-राम भी जब से वे सरकार हुए
कौन बिका है किसने बेचा और खरीदा है किसने
बाज़ारों में घर हैं अपने घर थे सो बाज़ार हुए
"जोगेश्वर" कुछ समझ न पाया क्या जादू करता है वो
उसने तो कुछ भी कह डाला हम कैसे तैयार हुए
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