कहता तो हूँ पांडवों की ही कथा मित्रों
तुम पर मुझ पर भी यही तो है घटा मित्रों
जो जीता हो गया सिकंदर हारे को हरि नाम
सदियों से चलता रहा यह सिलसिला मित्रों
गंदा नाला गंगा में मिल गंगा बनता था
आजकल ख़ुद गंगा की हालत खस्ता मित्रों
दिन भर भटके मधुमक्खी पर शहद नहीं मिलता
नक़ली फूलों ने कर डाला यह धोखा मित्रों
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1 comment:
पढ़ कर पोस्ट मजा, आ गया मुझको,
वरना क्यूँ कर मैं भला टिपयाता मित्रों.
--बेहतरीन!!
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