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Friday, 29 May 2009

दरकार है

आदमी को जिन्दगी दरकार है 
जिन्दगी को हर खुशी दरकार है 

चाँद निकले या कि मेरा घर जले 
रात को तो रौशनी दरकार है 

क़त्ल कर दूं मैं कि मेरा क़त्ल हो 
आपको तो सनसनी दरकार है 

क्यों तुम्हें व्यवधान में आनंद है 
क्यों तुम्हें बस खलबली दरकार है 

कब कहा सारी खुशी देदो मुझे 
आप हंस दें बस यही दरकार है 

देवताओं स्वर्ग में बैठे रहो 
इस ज़मीं को आदमी दरकार है 

सत्य जीतेगा हकीकत है मगर 
यह हकीकत आज भी दरकार है 

आज "जोगेश्वर" ग़ज़ल कहने लगा 
इस ग़ज़ल को दाद भी दरकार है

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