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Thursday, 28 May 2009

गए थे पास उनके

गए थे पास उनके पर उन्हें मिल कर नहीं आये 
बहुत कुछ था जुबां पर पर उन्हें कह कर नहीं आये

कहे जो सच करे जो लीक से हट कर सदा बातें 
कहो है कौन जिस पर सुलगते पत्थर नहीं आये

मुझे मालूम है इस कोठरी में खूब इतराकर  
गए थे सूरमा पर दाग से बच कर नहीं आये

गए हम घाट गंगा के मगर फिर भी रहे पापी  
असर होता कहाँ से हम उसे छूकर नहीं आये

जनमते ही सभी प्राणी खुशी से झूम उठते हैं  
फ़क़त इंसान ऐसे हैं कभी हंस कर नहीं आये

हमारी बहस मालिक से अगर होगी यही होगी 
बुलाया आपने हमको कि हम चल कर नहीं आये

सजी है खूब महफ़िल आपकी मौजूद हैं सारे 
कमी है सिर्फ इतनी सी कि "जोगेश्वर" नहीं आये

2 comments:

Udan Tashtari said...

गए हम घाट गंगा के मगर फिर भी रहे पापी
असर होता कहाँ से हम उसे छूकर नहीं आये

--वाह वाह!! बहुत खूब!!

वीनस केसरी said...

सजी है खूब महफ़िल आपकी मौजूद हैं सारे कमी है सिर्फ इतनी सी कि "जोगेश्वर" नहीं आये


सुन्दर मक्ता , सुन्दर गजल

वीनस केसरी