कि हर तरफ जहान में खुशी अमन करार है
तपाइए न और अब मुझे मुआफ कीजिये
लहू गरम नहीं हुआ ज़नाब ये बुखार है
लहूलुहान खच्चरों कहो कि फर्क क्या लगा
लदा हुआ लगेज है कि आदमी सवार है
न कीजिये सितम न ज़ुल्म तालिबानियों सुनो
कि हुश्न को हुज़ूर अब नकाब नागवार है
नशा नहीं किया हुआ न होश हैं उडे हुए
कि एक लफ्ज़ इश्क का खुमार बेशुमार है
गुज़र गयी तमाम उम्र सोचते तलाशते
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है
2 comments:
बहुत खूब !!
तपाइए न और अब मुझे मुआफ कीजिये
लहू गरम नहीं हुआ ज़नाब ये बुखार है
-बहुत खूब!!
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