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Monday, 8 June 2009

फ़ैल रही है घोर निराशा

फ़ैल रही है घोर निराशा कमजोरों लाचारों में
बैद-हकीम-चिकित्सक सारे खुद शामिल बीमारों में

ताज किया तामीर कटे वो हाथ यहाँ बेदर्दी से
जंग छिडी है ताजमहल की रौनक के हकदारों में

हैरत में है खुद सौदागर हाल वतन का क्या होगा
कैसे कैसे लोग खड़े है बिकने को बाज़ारों में

मेरा उनतक उनका मुझतक संदेशा पहुंचे कैसे
जोश कौन भर पायेगा इन उदासीन हरकारों में

रुके नहीं जो झुके नहीं जो अटल रहे हर मौसम में
फांसी पर लटकाया उनको चुनवाया दीवारों में

आम आदमी दर्शक बन कर देखे सब करतूतों को
जोड़-तोड़ भी गुणा-भाग भी सत्ता के गलियारों में

जब चाहे उपयोग करें वो जब चाहे खूंटी धरदें
वे योद्धा हैं महारथी हैं हम उनके हथियारों में

"जोगेश्वर" को एक भरोसा हिम्मत-होश रखो कायम
द्वार खुलेगा कहीं किसी दिन पत्थर की दीवारों में

5 comments:

admin said...

पर फिरभी कायम है आशा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

drdhabhai said...

क्या बात है

Gyan Darpan said...

आम आदमी दर्शक बन कर देखे सब करतूतों को
जोड़-तोड़ भी गुणा-भाग भी सत्ता के गलियारों में |
बहुत सटीक !

Gyan Darpan said...

हमेशा की तरह की ज्ञान वर्धक पन्ना |

राजीव जैन said...

bahut khub