कभी नाम खुशबू दिया चांदनी को
चकित हैं सितारे नजारे अचंभित
कभी जिंदगी को खुशी को कभी हम
रहे ढूंढते पर नहीं ढूंढ पाए
मिला तू अचानक लगा यूं हमें तब
मिली हर खुशी पा लिया जिंदगी को
बनूँ डाल मैं तू खिले फूल बन कर
करें तर हवा को नयी खुशबुओं से
बनूँ मैं दिया तू बने लौ दिए की
भरें इस जहां में नयी रौशनी को
जिन्हें तैरने में महारत मिली थी
सयाने बने वो नहीं पार उतरे
यहाँ डूब जाए वही पार निकले
मुहब्बत अगर नाम दें इस नदी को
अनोखा गणित है अज़ब दास्ताँ है
समझ लो अगर तो बहुत ही सरल है
घटेगा अगर दर्द साझा करो तो
बढेगी अगर बाँट दोगे खुशी को
नहीं कोई जादूगरी ये किसी की
न ही "जोगेश्वर" ये चमत्कार कोई
उडाने चले थे हंसी जो तुम्हारी
तरसते नज़र आ रहे वो हंसी को
5 comments:
बहुत सुन्दर रचना बधाई .
बढिया भाव पुर्ण .........बधाई
बहुत बेहतरीन, प्रवाहमय!!
good
जिन्हें तैरने में महारत मिली थी
सयाने बने वो नहीं पार उतरे
यहाँ डूब जाए वही पार निकले
मुहब्बत अगर नाम दें इस नदी को
वाह जोगेश्वर जी वाह...सारी ही रचनाएँ अपने आप में विलक्षण हैं...आप की लेखन क्षमता प्रशंशनीय है...लिखते रहें.
नीरज
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