आज नहीं तो कल निकलेगा
बहुत भरोसा मत कर लेना
उसमें आखिर छल निकलेगा
रस्सी तो जल चुकी मगर अब
कैसे उसका बल निकलेगा
पग पग घात लगाए दुश्मन
कैसे संभल संभल निकलेगा
भागे मरीचिका के पीछे
शायद आगे जल निकलेगा
किसे पता था सर का साया
आवारा बादल निकलेगा
दिल में से निकलेगा कैसे
आँखों से ओझल निकलेगा
कब सोचा था मेरा मितवा
मुझसा ही पागल निकलेगा
तेरे साथ बरस भी पल सा
तुम बिन मुश्किल पल निकलेगा
पत्थर दिल लगता उपरसे
भीतर से कोमल निकलेगा
मत छेडो दिल की परतों को
बुरी तरह घायल निकलेगा
तू जो साथ चले "जोगेश्वर"
रस्ता बहुत सरल निकलेगा
7 comments:
बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
तेरे साथ बरस भी पल सा
तुम बिन मुश्किल पल निकलेगा
Waah ! Waah ! Waah ! lajawaab rachna....bahut hi sundar...aanand aa gaya padhkar..aabhar.
pathar dil lagata hai lekin andar se komal nikalega bahut khub kahi aapne ..........ek ek sher kafi sundar ban pade hai.........
मत छेडो दिल की परतों को
बुरी तरह घायल निकलेगा
वाह जोगेश्वर जी वाह...सीधे साधे शब्दों में बहुत सी बातें कह गए आप...बहुत बढ़िया ग़ज़ल...बधाई...
नीरज
हर मुश्किल का हल निकलेगा
आज नहीं तो कल निकलेगा !
बेहतरीन प्रस्तुति ।
हल तो बिल्कुल निकलेगा सरजी
सत्य चुप हो सकता है हार नहीं सकता
क्योंकि मेरे आदरणीय लिख गए हैं
जब बोलना गुनाह हो तो मौन में विश्वास हो
इक बार झूमेंगी डालियां और अर्चना की भी थालियां
बस आंचल में सिमटा प्यार हो चरणों में पुण्य प्रकाश हो
प्रतिपल कहानी चल रही चाहे प्यार हो परिहास हो
मुझे जिन्दगी की प्यास हो
अच्छा लिख रहे हैं लग रहा है कि ये बातें जीवन में उतरें तो जोगेश्वर जालोरी अटल बिहारी की जगह भी.......
हर मुश्किल का हल निकलेगा
आज नहीं तो कल निकलेगा
-यही आशावाद चाहिये.
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