ऊपरवाला दे देता है क्यों ऐसा वरदान सदा
मैं जिस पत्थर को भी पूजूं बन जाए भगवान सदा
आना जाना सत्य-सनातन ठहर सको तो अचरज है
दुनिया एक सराय सरीखी तू उसमें मेहमान सदा
आओ बैठो सुस्तालो पर मानस ऐसा बना रहे
जाने कब चलना पड़ जाए सधा रहे सामान सदा
कौन गवाही कौन सफाई कौन सुनेगा तर्क तेरे
ऊपरवाला सीधे जारी कर देता फरमान सदा
उपदेशों की झड़ी लगाने वाले सोचें इतना सा
करना बहुत कठिन होता है कहना तो आसान सदा
मैं तो जैसा हूँ वैसा हूँ इक खोते सिक्के जैसा
फ़िर भी मैं इतना सम्मानित यारों का अहसान सदा
नहीं देवता नहीं फ़रिश्ता नहीं बनो भगवान कभी
"जोगेश्वर" बन सको अगर तो बने रहो इंसान सदा
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2 comments:
बहुत बढिया लिखा है ...
बहुत बढिया लिखा ... बधाई।
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