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Tuesday 12 May, 2009

अजीब हैं

अजीब हैं हुज़ूर तो अजीब ये विचार है 
कि हर तरफ जहान में खुशी अमन करार है

तपाइए न और अब मुझे मुआफ कीजिये  
लहू गरम नहीं हुआ ज़नाब ये बुखार है

लहूलुहान खच्चरों कहो कि फर्क क्या लगा
लदा हुआ लगेज है कि आदमी सवार है

न कीजिये सितम न ज़ुल्म तालिबानियों सुनो  
कि हुश्न को हुज़ूर अब नकाब नागवार है

नशा नहीं किया हुआ न होश हैं उडे हुए  
कि एक लफ्ज़ इश्क का खुमार बेशुमार है

गुज़र गयी तमाम उम्र सोचते तलाशते  
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत खूब !!

Udan Tashtari said...

तपाइए न और अब मुझे मुआफ कीजिये
लहू गरम नहीं हुआ ज़नाब ये बुखार है

-बहुत खूब!!