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Saturday, 16 May 2009

झूंठी बातें चलना मुश्किल

झूंठी बातें चलना मुश्किल
पल पल बात बदलना मुश्किल

प्यार मुहब्बत भूल-भुलैया
घुसना सरल निकलना मुश्किल

तुमसे दूर रहा तो जाना
तुमसे दूर निकलना मुश्किल

अधबीच नींद उचट जाए तो
टूटे स्वप्न संवरना मुश्किल

इस नगरी रपटीली राहें
फिसले पाँव संभलना मुश्किल

कठिन हुआ अब हद में रहना
हद से पार गुजरना मुश्किल

बहुत कठिन है मरना लेकिन
तुम बिन जीना कितना मुश्किल

हुआ असंभव चुप रहना भी
रोना आहें भरना मुश्किल

"जोगेश्वर" कुछ जतन करो अब
कश्ती पार उतरना मुश्किल

1 comment:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

भाई जोगेश्वर जी, यह रचना चुनाव परिणाम से पहले की है या उसके तुरंत बाद की? कश्ती पार उतरना मुश्क़िल किसे कहा है?