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Thursday, 21 May 2009

पत्थर अज़ीज़ है

थक गया जब बेतहाशा काम मिल गया 
बेकार हूँ बेशक मगर आराम मिल गया

पत्थर अज़ीज़ है अगर लाओ खरीद कर 
है फालतू हीरा अगर बेदाम मिल गया

ईमानदार शख्श भुगतता रहा सदा 
मशगूल जुर्म में रहा ईनाम मिल गया

लूंगा हिसाब बूँद बूँद का ओस की 
जिस रोज बाग़ में मुझे गुलफाम मिल गया

मैं खुद हुज़ूर के लिए बेताब खूब था 
अच्छा हुआ कि आपका पैगाम मिल गया

इंसान है कि चाँद है इतना बता मुझे 
खो गया हर सुबह पर हर शाम मिल गया

समझाऊंगा उसे कि संभल कर चले ज़रा 
मुझको कहीं "जोगेश्वर" बदनाम मिल गया

3 comments:

अमिताभ मीत said...

समझाऊंगा उसे कि संभल कर चले ज़रा
मुझको कहीं "जोगेश्वर" बदनाम मिल गया

बहुत खूब !!

वीनस केसरी said...

मक्ता वास्तव में खूबसूरत बन पड़ा है सभी शेर अच्छे लगे

वीनस केसरी

Unknown said...

लगे रहिए सरजी
क्योंकि

कभी पुष्पों से थाली भरेगी
दुनिया आएगी अर्चन करेगी

विद रिगार्ड: प्रदीप