बेकार हूँ बेशक मगर आराम मिल गया
पत्थर अज़ीज़ है अगर लाओ खरीद कर
है फालतू हीरा अगर बेदाम मिल गया
ईमानदार शख्श भुगतता रहा सदा
मशगूल जुर्म में रहा ईनाम मिल गया
लूंगा हिसाब बूँद बूँद का ओस की
जिस रोज बाग़ में मुझे गुलफाम मिल गया
मैं खुद हुज़ूर के लिए बेताब खूब था
अच्छा हुआ कि आपका पैगाम मिल गया
इंसान है कि चाँद है इतना बता मुझे
खो गया हर सुबह पर हर शाम मिल गया
समझाऊंगा उसे कि संभल कर चले ज़रा
मुझको कहीं "जोगेश्वर" बदनाम मिल गया
3 comments:
समझाऊंगा उसे कि संभल कर चले ज़रा
मुझको कहीं "जोगेश्वर" बदनाम मिल गया
बहुत खूब !!
मक्ता वास्तव में खूबसूरत बन पड़ा है सभी शेर अच्छे लगे
वीनस केसरी
लगे रहिए सरजी
क्योंकि
कभी पुष्पों से थाली भरेगी
दुनिया आएगी अर्चन करेगी
विद रिगार्ड: प्रदीप
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