बहुत कुछ था जुबां पर पर उन्हें कह कर नहीं आये
कहे जो सच करे जो लीक से हट कर सदा बातें
कहो है कौन जिस पर सुलगते पत्थर नहीं आये
मुझे मालूम है इस कोठरी में खूब इतराकर
गए थे सूरमा पर दाग से बच कर नहीं आये
गए हम घाट गंगा के मगर फिर भी रहे पापी
असर होता कहाँ से हम उसे छूकर नहीं आये
जनमते ही सभी प्राणी खुशी से झूम उठते हैं
फ़क़त इंसान ऐसे हैं कभी हंस कर नहीं आये
हमारी बहस मालिक से अगर होगी यही होगी
बुलाया आपने हमको कि हम चल कर नहीं आये
सजी है खूब महफ़िल आपकी मौजूद हैं सारे
कमी है सिर्फ इतनी सी कि "जोगेश्वर" नहीं आये
2 comments:
गए हम घाट गंगा के मगर फिर भी रहे पापी
असर होता कहाँ से हम उसे छूकर नहीं आये
--वाह वाह!! बहुत खूब!!
सजी है खूब महफ़िल आपकी मौजूद हैं सारे कमी है सिर्फ इतनी सी कि "जोगेश्वर" नहीं आये
सुन्दर मक्ता , सुन्दर गजल
वीनस केसरी
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