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Thursday, 25 June 2009

किसने किसको क्या समझाया पता नहीं

किसने किसको क्या समझाया पता नहीं
कैसे राज़ समझ में आया पता नहीं

दोनों नाच रहे है देखो खुशी खुशी
किसने किसको नाच नचाया पता नहीं

जुड़े हाथ से हाथ मिले दिल भी दिल से
किसने पहले हाथ बढाया पता नहीं

ऊंची नीची बात हजारों होती हैं
फिर भी कैसे साथ निभाया पता नहीं

अलग करो इनको तो कितना मुश्किल है
कौन बना है किसका साया पता नहीं

दाँव लगा डाले जीवन दीवानों ने
किसने खोया किसने पाया पता नहीं

दिल में कैसे दीप जले इन दोनों के
किसने दीपक राग सुनाया पता नहीं

इस जीवन का है या फिर है पिछले का
हमने कब का कौल निभाया पता नहीं

ऊपरवाला इसका कब क्या फल देगा
उसने क्यों ये ख्वाब दिखाया पता नहीं

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

नीरज गोस्वामी said...

अलग करो इनको तो कितना मुश्किल है
कौन बना है किसका साया पता नहीं
गर्ग साहेब इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कबूल कीजियेगा...ग़ज़ल के सारे शेर ही असर दार और खूबसूरत हैं...सदा ज़बान में कहे गए शेर सीधे दिल में जा उतरते हैं...वाह वा
नीरज