कैसे राज़ समझ में आया पता नहीं
दोनों नाच रहे है देखो खुशी खुशी
किसने किसको नाच नचाया पता नहीं
जुड़े हाथ से हाथ मिले दिल भी दिल से
किसने पहले हाथ बढाया पता नहीं
ऊंची नीची बात हजारों होती हैं
फिर भी कैसे साथ निभाया पता नहीं
अलग करो इनको तो कितना मुश्किल है
कौन बना है किसका साया पता नहीं
दाँव लगा डाले जीवन दीवानों ने
किसने खोया किसने पाया पता नहीं
दिल में कैसे दीप जले इन दोनों के
किसने दीपक राग सुनाया पता नहीं
इस जीवन का है या फिर है पिछले का
हमने कब का कौल निभाया पता नहीं
ऊपरवाला इसका कब क्या फल देगा
उसने क्यों ये ख्वाब दिखाया पता नहीं
2 comments:
बहुत बढ़िया.
अलग करो इनको तो कितना मुश्किल है
कौन बना है किसका साया पता नहीं
गर्ग साहेब इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कबूल कीजियेगा...ग़ज़ल के सारे शेर ही असर दार और खूबसूरत हैं...सदा ज़बान में कहे गए शेर सीधे दिल में जा उतरते हैं...वाह वा
नीरज
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